Blog

  • Home
  • Poems

कश्मीर मेरी जनम भूमि की पुकार

लेखक : कमलेश चौहान २००९

ओह ! आसमान वाले, ओह! दुखियों के रखवाले
तेरा है भारत तू भारत का,महाभारत रचाने वाले

तेरी मोजुदगी में हर कश्मीरी भारती रोता रहा
तू जानकर भी इस कदर खामोश देखता रहा

तुने देखी हिन्दू माँ की लावारिस लाशे
तुने सुनी हजारो लाचार पुत्रो की आंहे

दरिंदो ने हिन्दू माँ की कोख को झिंझोर दिया
नवी नवेली दुल्हनों का सिंदूर मांग से पोछ दिया

आयो सरसवती इस धरती पे , जनम ले फिर नन्दलाल
महक उठे फिर गुलसता, चहक उठे फिर डाल डाल

एह मेरे पियारे वतन,फिर तेरी याद लौट आई
दिल से उठी एक चीख , आख़ मेरी भर आई

कहीं भी हो चाहे मेरा वजूद ,कही भी हो मेरा बसेरा
दिल से जुदा न होगा भारत का मुकुट है कश्मीर मेरा

Nothing should be taken away or manipulated from this poem. All right are reserved with Kamlesh Chauhan. 2009

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *